मार्टिन लूथर किंग ने कहा है- ‘जीवन का सबसे स्थायी और अहम सवाल है- आप दूसरों के लिए क्या कर रहे हैं?’ स्टीव जॉब्स का भी इस पर अटूट भरोसा था। यही मोटो एपल की नींव भी है। हमारा फोकस टेक्नोलॉजी की मदद से जिंदगी को आसान बनाना है। हमारा मकसद है कुछ नया करना और बाजार में नए बेंचमार्क स्थापित करना। रोज जीतना है तो इनोवेशन करते रहना जरूरी है। इसे आदत बनाना होगा। व्यक्तिगत और प्रोफेशनल, दोनों स्तर पर जुनून होना जरूरी है। सिर्फ इनोवेशन ही जीवन को बेहतर बना सकता है। हम हाई-एंड टेक्नोलॉजी को भी आम यूजर के इस्तेमाल लायक बनाते हैं।
मेरा मानना है कि हर कंपनी में संकट का दौर आता है। ऐसे में शांत रहकर समाधान तलाशना जरूरी हो जाता है। एपल में भी दो बड़े मौके आए, जब मैंने इन्हीं गुणों पर भरोसा किया। स्टीव के निधन से मैं टूट गया था। बतौर सीईओ मैंने सिर्फ स्टीव के विजन को आगे बढ़ाया है। स्टीव अक्सर कहते थे, यदि आपने बहुत महान काम किया है तो उस पर बैठे नहीं रहना चाहिए। उतना ही महान दूसरा लक्ष्य तलाशना और उस पर आगे बढ़ना चाहिए।
हमारे सामने बढ़ती मैन्यूफैक्चरिंग लागत बड़ा मुद्दा बनती जा रही थी। विरोध के बावजूद तय किया कि मैन्यूफैक्चरिंग नहीं करेंगे। चीन-ताइवान से कॉन्ट्रैक्ट मैन्यूफैक्चरिंग शुरू की। हमने ग्लोबल सप्लाई चेन को मजबूत किया। इससे शिपिंग क्षमता भी बढ़ी। यह रणनीति कारगर रही। आज दुनिया के कोने-कोने में एपल है, जो इसी विजन की सफलता है।
एपल में अकेला कोई कुछ नहीं कर सकता। मैं दो चीजों में विश्वास करता हूं। एक है ‘डिग्निटी ऑफ लेबर’। छोटे-छोटे काम आपको किसी व्यवसाय के अहम पहलू सिखा सकते हैं और लोगों के जीवन को छूने में मदद कर सकते हैं। दूसरा है- प्रोफेशन और पर्सनल लाइफ में सामंजस्य बिठाना। इसके लिए मैं रोज तड़के 3ः45 बजे उठता हूं। मेडिटेशन करता हूं। एक घंटा जिम में बिताता हूं। ई-मेल्स का जवाब देता हूं, यूजर्स के फीडबैक देखता हूं ताकि नया पर्सपेक्टिव मिल सके। रोज सुबह 8ः10 बजे ऑफिस जाता हूं। दिन में 15-20 मीटिंग्स होती हैं। काम कब खत्म होगा, इसका वक्त तय नहीं है। फिर भी रात 8-9 बजे सो जाता हूं। अक्सर पूछा जाता है कि एक दिन में इतना सब कैसे कर लेते हैं, तो मेरा इतना ही जवाब है कि अपना शेड्यूल बनाएं और उसका सम्मान करें। सब कुछ संभव है।
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मार्टिन लूथर किंग ने कहा है- ‘जीवन का सबसे स्थायी और अहम सवाल है- आप दूसरों के लिए क्या कर रहे हैं?’ स्टीव जॉब्स का भी इस पर अटूट भरोसा था। यही मोटो एपल की नींव भी है। हमारा फोकस टेक्नोलॉजी की मदद से जिंदगी को आसान बनाना है। हमारा मकसद है कुछ नया करना और बाजार में नए बेंचमार्क स्थापित करना। रोज जीतना है तो इनोवेशन करते रहना जरूरी है। इसे आदत बनाना होगा। व्यक्तिगत और प्रोफेशनल, दोनों स्तर पर जुनून होना जरूरी है। सिर्फ इनोवेशन ही जीवन को बेहतर बना सकता है। हम हाई-एंड टेक्नोलॉजी को भी आम यूजर के इस्तेमाल लायक बनाते हैं।
मेरा मानना है कि हर कंपनी में संकट का दौर आता है। ऐसे में शांत रहकर समाधान तलाशना जरूरी हो जाता है। एपल में भी दो बड़े मौके आए, जब मैंने इन्हीं गुणों पर भरोसा किया। स्टीव के निधन से मैं टूट गया था। बतौर सीईओ मैंने सिर्फ स्टीव के विजन को आगे बढ़ाया है। स्टीव अक्सर कहते थे, यदि आपने बहुत महान काम किया है तो उस पर बैठे नहीं रहना चाहिए। उतना ही महान दूसरा लक्ष्य तलाशना और उस पर आगे बढ़ना चाहिए।
हमारे सामने बढ़ती मैन्यूफैक्चरिंग लागत बड़ा मुद्दा बनती जा रही थी। विरोध के बावजूद तय किया कि मैन्यूफैक्चरिंग नहीं करेंगे। चीन-ताइवान से कॉन्ट्रैक्ट मैन्यूफैक्चरिंग शुरू की। हमने ग्लोबल सप्लाई चेन को मजबूत किया। इससे शिपिंग क्षमता भी बढ़ी। यह रणनीति कारगर रही। आज दुनिया के कोने-कोने में एपल है, जो इसी विजन की सफलता है।
एपल में अकेला कोई कुछ नहीं कर सकता। मैं दो चीजों में विश्वास करता हूं। एक है ‘डिग्निटी ऑफ लेबर’। छोटे-छोटे काम आपको किसी व्यवसाय के अहम पहलू सिखा सकते हैं और लोगों के जीवन को छूने में मदद कर सकते हैं। दूसरा है- प्रोफेशन और पर्सनल लाइफ में सामंजस्य बिठाना। इसके लिए मैं रोज तड़के 3ः45 बजे उठता हूं। मेडिटेशन करता हूं। एक घंटा जिम में बिताता हूं। ई-मेल्स का जवाब देता हूं, यूजर्स के फीडबैक देखता हूं ताकि नया पर्सपेक्टिव मिल सके। रोज सुबह 8ः10 बजे ऑफिस जाता हूं। दिन में 15-20 मीटिंग्स होती हैं। काम कब खत्म होगा, इसका वक्त तय नहीं है। फिर भी रात 8-9 बजे सो जाता हूं। अक्सर पूछा जाता है कि एक दिन में इतना सब कैसे कर लेते हैं, तो मेरा इतना ही जवाब है कि अपना शेड्यूल बनाएं और उसका सम्मान करें। सब कुछ संभव है।
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