पटना/जमुई. गांव के बच्चों को संस्कृत में फेल होते देखा तो पहले चार महीने खुद संस्कृत पर मेहनत किया और ठान ली कि अब किसी बच्चे को फेल नहीं होने दूंगा। कोचिंग खोला और 11 बच्चों से शुरुआत की। आज 80 बच्चे पढ़ने आते हैं और इसमें आधे से ज्यादा बच्चे निःशुल्क शिक्षा लेते हैं। पिछले 3 सालों में एक भी बच्चा संस्कृत फेल नहीं हुआ। कई बच्चों को तो 80 प्रतिशत से ज्यादा नंबर मिले। पिछले साल एक बच्चे को संस्कृत में 90 नंबर आए। ये कहानी है बिहार के जमुई जिले के रवि मिश्रा की।

गांव के बच्चे फेल हुए तो दुख हुआ...खुद ट्रिक बनाकर संस्कृत सिखाने की ठानी
रवि बताते हैं कि साल 2016 के जून महीने में 10वीं का रिजल्ट आया था और जब परीक्षा परिणाम देखा तो उसमें गांव के 14 बच्चे संस्कृत में फेल हो गए थे। बच्चों से पूछा तो पता चला कि संस्कृत समझ में नहीं आती। रवि ने इसे मिशन के तौर पर लिया और पहले खुद चार महीने तक संस्कृत का रिवीजन किया। फिर बच्चों को पढ़ाने के लिए ट्रिक्स बनाए। रवि बताते हैं कि बच्चों को सबसे ज्यादा परेशानी संस्कृत के श्लोक याद करने में होती है। मैंने उसे संगीत के हिसाब से ढाल दिया। बच्चों को याद करने की बजाय संस्कृत के श्लोक गाकर पढ़ने को कहता हूं। इससे न सिर्फ बच्चों के लिए संस्कृत आसान हो गई बल्कि बच्चे इसमें रूचि भी लेने लगे। रवि ने साइंस और पत्रकारिता की पढ़ाई की है।

खुद गरीबी देखी, इसलिए दूसरों की गरीबी का अहसास है
रवि बताते हैं कि उनके संस्थान 'द ज्ञानम एकेडमी' में 40 प्रतिशत से ज्यादा बच्चे निःशुल्क शिक्षा लेते हैं। बच्चों पर कभी फीस का दबाव नहीं दिया। उनके लिए सबसे ज्यादा जरूरी है बच्चों की सफलता। वह बताते हैं कि जब साइंस से ग्रेजुएशन कर रहा था तब उतने पैसे नहीं होते थे कि हर विषय की कोचिंग कर सकूं। खुद गरीबी से गुजरा हूं, इसलिए अहसास है कि गरीब मां-बाप के लिए बच्चों की फीस भरना कितना मुश्किल होता है। यही वजह है कि कभी बच्चों पर फीस के लिए दबाव नहीं बनाया। जिनके पास पैसा नहीं हैं उनके लिए मेरी कोचिंग का दरवाजा खुला है।

'पहले लगता था फेल हो जाऊंगी...ट्रिक ने संस्कृत को आसान बना दिया'
कोचिंग में पढ़ने वाली छात्रा नेहा रानी मिश्रा ने बताया कि मैंने दूसरे जगह भी कोचिंग की है। लेकिन, सर यहां जिस तरह गाना और कहानी के माध्यम से हमें पढ़ाते हैं उससे संस्कृत काफी आसान लगने लगा है। पहले तो लगता था कि संस्कृत में फेल कर जाऊंगी लेकिन अब लगता है कि इस विषय में तो 60 से 70 प्रतिशत नंबर तो साधारण बच्चे भी ले आएंगे। जिस तरह ट्रिक के माध्यम से हमें पढ़ाया जाता है, मुझे विश्वास है कि मैं 80 प्रतिशत से ज्यादा नंबर ला सकती हूं। संस्कृत हमारी संस्कृति है और मेरी इच्छा है कि आगे भी इस विषय को पढ़ूं।

कम्यूनिकेशन डेवलपमेंट की भी देते हैं शिक्षा
रवि बताते हैं कि बच्चों को संस्कृत और अन्य विषय पढ़ाने के साथ-साथ कम्यूनिकेशन डेवलपमेंट पर भी काम करते हैं। बच्चों को एक ही बात सिखाता हूं-'डर जाओगे तो बिखर जाओगे और डट जाओगे तो संवर जाओगे'। बच्चों के लिए जितनी जरूरी पढ़ाई है उससे ज्यादा जरूरी है उन्हें मोटिवेट करना। क्योंकि अगर वे मोटिवेट नहीं हुए और उनमें कुछ नया करने की ललक पैदा नहीं हुई तो पढ़ाई बोझ बन जाएगा।



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अपने कोचिंग में बच्चों को संस्कृत की शिक्षा देते रवि मिश्रा।

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