अमृत योग में इसबार दो अप्रैल मंगलवार को रामनवमी मनेगी। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा 25 मार्च बुधवार से रेवती नक्षत्र के साथ वासंती नवरात्र यानी चैती नवरात्र अारंभ हाे रहा है। इसी दिन से नव वर्ष विक्रम संवत 2077 भी शुरू हाेगा। माता की अाराधना करने वाले भक्ताें के लिए 25 मार्च की सुबह 9 बजे से पहले या 10.30 बजे के बाद पूर्वाह्न में कलश स्थापना करने का शुभ मुहूर्त है। सनातन धर्म में चैती नवरात्र मनाकर शक्ति की देवी माता जगदंबा की अाराधना की परंपरा शारदीय नवरात्र से भी पहले से चली अा रही है। प्राय: अन्य किसी भी नवरात्र में सूर्य, विष्णु, दुर्गा, हनुमान अाैर श्रीराम अादि देवताअाें की पूजा करने की विशेष तिथि नहीं मिलती है। इसलिए श्रद्धालुअाें काे श्रद्धा, भक्ति, विश्वास, नियम अाैर संयमपूर्वक इस नवरात्र में देवी-देवताअाें की अाराधना करनी चाहिए।
चैत के महीने में जाे नवरात्र मनार्इ जाता है, इसमें भगवान विष्णु के दाे-दाे अवतार हुए हैं। चैत्र शुक्ल पंचमी काे भगवान नारायण का सबसे पहला अवतार मत्स्या अवतार अाैर चैत्र शुक्ल नवमी काे मर्यादा पुरुषाेत्तम भगवान राम का अवतार हुअा था। साथ ही ऊर्जा के कारक व प्रकृति के रक्षक भगवान सूर्य नारायण का चैती छठ भी इसी नवरात्र के बीच पड़ता है।
प्रमुख पर्व
{25 मार्च को कलश स्थापना, { 26 मार्च को रेमंत पूजा, {27 मार्च को गौरी तृतीया व्रत,{28 मार्च काे गणेश चौथ व्रत अाैर चैती छठ का नहाय-खाय {29 काे श्री पंचमी, लक्ष्मी पूजा, भगवान नारायण का मत्स्या अवतार और चैती छठ का खरना {30 मार्च को सूर्य षष्ठी व्रत, मां दुर्गे का विल्वाभिमंत्रण अाैर चैती छठ का सायंकालीन अर्घ्य दान {31 मार्च काे चैती छठ का प्रात:कालीन अर्घ्य दान, छठ व्रत का पारण, देवी जी का पत्रिका प्रवेश और पट खुलेगा। रात्रि बेला में महानिशा पूजा {1 अप्रैल काे महाअष्टमी व्रत अाैर संधि पूजा, दीक्षा ग्रहण {2 अप्रैल काे रामनवमी व्रत,महानवमी व्रत, त्रिशूलनी पूजा, रामावतार, हनुमान जी का ध्वजा दान,श्री सीताराम पूजन-दर्शन अाैर दीक्षा ग्रहण का मुहूर्त {3 अप्रैल को विजयादशमी
तीन को विजयादशमी, विसर्जन
फारबिसगंज निवासी पंडित सुनील कुमार मिश्रा के अनुसार चार नवरात्रों में से चैत्र नवरात्र के मध्य ही ऐसा अवसर आता है, जब भक्तों को मां जगदंबा, मां भगवती, भगवान सूर्य नारायण, भगवान विष्णु, भगवान राम व हनुमान जी की पूजा एक साथ करने का अवसर प्राप्त होता है। एक साथ कई देवताओं की पूजा-आराधना और ऋतु परिवर्तन होने के खास महत्व है।
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