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भोजपुर-बक्सर की सीमा से लगे गंगा के तटवर्ती इलाके में की जा रही परवल की खेती ने क्षेत्र के 100 से ज्यादा कृषक परिवारों की तकदीर बदल दी है। प्रतिवर्ष कभी बाढ़ तो कभी सुखाड़ से जूझ रहे यहां के किसान अब परवल की खेती से काफी अच्छी कमाई कर रहे है। तटवर्ती क्षेत्रों के लगभग 200 बीघा जमीन पर किसानों द्वारा परवल की खेती की जा रही है। इससे प्रतिवर्ष किसानों को प्रति बीघा 70 हजार से एक लाख तक का मुनाफा हो जा रहा है। ऐसे में पहले काफी मुश्किल झेलने वाले यहां के किसानों की माली हालत सुधरने लगी है।
गौरतलब हो कि 10 वर्ष पहले इसी जमीन पर कभी बाढ़ तो कभी सुखाड़ की मार झेल रहे क्षेत्र के किसानों को पेट पालना तक मुश्किल था। इस वजह से किसानों को मजदूरी करने के लिए दूसरे प्रदेशों में पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ता था। लगभग 10 वर्ष पूर्व दियारा क्षेत्र के गंगा के तटवर्ती क्षेत्रों में परवल की खेती की शुरुआत महज एक-दो किसानों द्वारा शुरू की गई थी। परवल की खेती से इन किसानों को अच्छी आमदनी हुई। इसके बाद इसे देखकर अन्य किसान भी धीरे-धीरे परवल की खेती के तरफ आकर्षित होने लगे।
फिलवक्त, क्षेत्र में 100 से अधिक किसान गंगा के तटवर्ती दियरा इलाके में और बक्सर जिले व सीमावर्ती उतर प्रदेश की 200 बीघा जमीन पर परवल की खेती कर रहे है। इससे इन किसानों को काफी अच्छा मुनाफा हो रहा है। किसानों का कहना है कि एक बीघा परवल की खेती में 15 हजार से 20 हजार रुपये की लागत लगती है और मुनाफा प्रति बिगहा 70 हजार से एक लाख तक प्रति बीघा हो जाता है। यही कारण है कि पहले अपना पेट पालने के लिए दूसरे प्रदेश में जाने वाले किसान परवल की खेती कर संपन्न हो रहे हैं।
परवल खेती से सैकड़ों महिलाओं और पुरुषों को भी मिलता है रोजगार
परवल की खेती करने वाले किसान स्थानीय स्तर पर सैकड़ों लोगों को रोजगार भी दे रहे है। किसानों का कहना है कि क्षेत्र के 100 से अधिक किसान परवल की खेती करते है। परवल की बुआई, कुड़ाई व झोराई से लेकर परवल के उत्पादन के वक्त तोड़ाई तक सैकड़ों पुरूष व महिला मजदूरों को रोजगार के अवसर मिलते है। परवल की खेती में तो महिला मजदूरों को भी रोजगार का अच्छा मौका मिलता है। परवल की खेती की शुरुआत अक्टूबर-नवंबर माह से शुरू होती है। इस दौरान किसान छपरा, सीवान व गोपालगंज से परवल की लती लाते हैं और इसकी बुआई दिसंबर के प्रथम सप्ताह तक पूरी कर ली जाती है। इसके 2 सप्ताह के बाद मजदूरों द्वारा कुदाल से परवल की कुड़ाई होती है। इसके बाद महिला मजदूरों द्वारा परवल की बोई गई लती की भराई होती है। फिर फरवरी-मार्च से परवल का उत्पादन शुरू हो जाता है। इस दौरान परवल की तोड़ाई में 100 से 200 ग्रामीण मजदूरों को प्रतिदिन रोजगार मिलता है। किसानों का कहना है कि परवल का उत्पादन मार्च से शुरू हो जाता है, जो गंगा के बाढ़ आने तक जारी रहता है।
क्या कहते है परवल की खेती करने वाले किसान
- कायस्थ टोला गांव के किसान महावीर पासवान का कहना है कि करीब 5 वर्ष पहले महज 10 कट्ठा में परवल की खेती की थी जिसमें 50 हजार रुपये का मुनाफा हुआ। इसके बाद से 3 एकड़ में परवल की खेती करता हूं। इससे प्रति एकड़ डेढ़ लाख तक की बचत होती है। परवल की खेती से अपने बच्चों का भरण पोषण अच्छी तरह से कर पाता हूं।
- धृतपुरा गांव के किसान झबु चौधरी का कहना है कि परवल की खेती ने हमारी तकदीर ही सुधार दी है। आज परवल की खेती से जहां सैकड़ों किसानों को अच्छी आमदनी हो रही हैं। वहीं दूसरे प्रदेशों में जाकर मजदूरी करने वाले मजदूरों को स्थानीय स्तर पर रोजगार भी मिल रहा है। आज परवल की खेती हम किसानों के परिवार की जीवन रेखा ही बदल दी है।
- कायस्थ टोला गांव के किसान नारायन यादव का कहना है कि परवल की खेती हम किसानों के लिए वरदान सिद्ध हुई है। जब से परवल की खेती शुरू की हैं मेरे परिवार की दशा और दिशा दोनों ही बदल गई है। परवल की खेती से हम किसानों को स्वावलंबी बनने का एक अच्छा अवसर प्राप्त हुआ है। परवल की खेती के प्रति किसानों का रुझान काफी बढ़ रहा है।
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