कोरोना संक्रमण के रोकथाम के लिए पूरे जिले में भी लॉकडाउन किया गया है। इसमें अतिआवश्यक सेवाओं को ही छूट दी गई है। छोटे व्यापारियों के सामने लॉकडाउन में दुकानें बंद होने से रोजी रोटी पर संकट हो गया है। मजबूरी में बहुत से छोटे व्यापारियों ने व्यवसाय बदल लिया है और प्राय: सब्जी, फल व रिक्शा चलाने लग गए है। क्योंकि इस काम को लॉकडाउन में छूट दी गई है। यही कारण है गया शहर के सब्जी बाजार, सड़कों और मुहल्लों में सामान्य दिनों में जितने सब्जी दुकानें नहीं लगते थे। लेकिन, वर्तमान में उससे दोगुने लग रहे है।
लॉकडाउन से पहले तक कृष्णा साव शहर में बेचता थे खिलौना: लॉकडाउन से पहले तक कृष्णा साव शहर में खिलौना बेचता था। लॉकडाउन में खिलौना बेचना बंद करना पड़ा तो कृष्णा ने रिक्शा चलाना शुरू कर दिया। क्योंकि लॉकडाउन में रिक्शा चलाने पर रोक नहीं है। कृष्णा ने बताया कि तीन माह पूर्व झारखंड के साहेबगंज इलाके से चार एवं बिहार के अन्य जिलों से छह लोग गया शहर आकर खिलौना का व्यवसाय कर रहे थे। अचानक लॉकडाउन की खबर सुनने के बाद हमलोगों के सामने भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो गई। घर वालों को भी पैसा भेजना है और अपने साथ-साथ साथियों की भी जरूरत पूरी करनी पड़ रही है।

अपनी जरूरतें जुटाने के लिए दस में दो लोग रिक्शा चलाने लगे। शहर के कोयरीबारी निवासी ऑटो चालक शंकर प्रसाद एवं बब्लू प्रसाद काम बंद होने के बाद दोनों दोस्तों ने थोड़ा-थोड़ा पैसा मिला कर ठेला पर सब्जी लेकर शहर में घूम-घूम कर बेच रहे हैं। शंकर ने कहा कि घर पर खाली बैठने से रोजमर्रा की जरूरतें पूरी नहीं कर सकते। इसी कारण सब्जी व्यवसाय कर रहे हैं। क्योंकि इसे लॉकडाउन में छूट है तथा बहुत लागत भी नहीं लगानी पड़ी। सब्जी बेचकर ही परिवार चला रहे है।

शहर के नवागढ़ी निवासी मिठाई कारीगर अनिल प्रसाद होटल में मिठाई बनाते थे। लेकिन लॉकडाउन में होटल बंद हो गया तो अनिल महाजन से कर्ज लेकर फल बेचना शुरू कर दिया। अनिल ने कहा कि सरकार जरूरतमंदों को तीन माह का राशन निशुल्क दिया जा रहा है। लेकिन, हमलोगों को अब तक कुछ भी नहीं मिला। लॉकडाउन में फल बेचने पर रोक नहीं है, इसी कारण फल का व्यवसाय करने लगे। ताकि बच्चे भूखे नहीं रहे।



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When employment stopped, someone started running a rickshaw to feed them and some were selling vegetables

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