बिहार के औरंगाबाद जिले के रहने वाले राजकुमार प्रसाद के पास सिर्फ एक ही एकड़ खेती थी। इतनी कम जमीन की उपज से सात बच्चों के साथ परिवार का गुजारा करना राजकुमार प्रसाद के लिए एक चुनौती से कम नहीं था। घर में दोनों वक्त ठीक से चूल्हा भी नहीं जलता था। इन तमाम मुश्किलों के बावजूद राजकुमार प्रसाद अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते थे। बच्चे तो सरकारी स्कूल में पढ़ने जाते थे, लेकिन उनके पास जरूरत की किताबें और कापियां खरीदने के लिए भी पैसे नहीं होते थे। सबसे छोटा बेटा रोहित राज भी स्कूल जाने लगा था।

सुबह-सुबह मां बड़े प्यार से रात की बची हुई रोटी खिला कर रोहित को स्कूल भेज देती थी। हालत ऐसी थी कि रोहित के पास स्लेट तक नहीं थी, लेकिन हौसला था। इसलिए बड़े भाई की टूटी स्लेट से ही काम चला लेता था। स्कूल से घर वापस आकर खूब पढ़ता था। और हां, उसके लिए किताबों का संकट बहुत नहीं था। बड़े भाई-बहनों की पुरानी किताबों से काम चल जाता था।

रोहित की बड़ी बहन की शादी तय हो चुकी थी। गांव में कोई कर्ज देने को तैयार नहीं था। मजबूरन राजकुमार प्रसाद ने अपनी आधी जमीन बेच दी। उसके बाद खेती से घर चलना संभव ही नहीं रहा। तब उन्होंने एक भैंस खरीदी और फिर दूध बेचने का काम शुरू किया। कई बार रोहित को भी भैंस चराने जाना पड़ता था। रोहित बताता है कि उसको पढ़ाई का इतना शौक था कि वह भैंस की पीठ पर बैठ जाता था। भैंस चरती रहती थी। वह पढ़ता रहता था। पिता और भाई सुबह-शाम दूध दूहते थे लेकिन, घर-घर जाकर दूध पहुंचाने का काम रोहित का ही था। धीरे-धीरे समय बीत रहा था। अब रोहित हाई स्कूल में पहुंच गया था। समय निकालकर जितना भी हो सकता था रोहित पढ़ाई करता था। उसकी मेहनत से स्कूल के सभी शिक्षक बहुत प्रभावित थे।

सब रोहित को प्यार करते थे और उसका हौसला बढ़ाते थे लेकिन, शिक्षक मदन बाबू का जवाब ही नहीं था। जब भी रोहित स्कूल जाता वहां उसकी मुलाकात मदन बाबू से होती थी। क्लास खत्म होने के बाद मदन बाबू एकांत में रोहित से खूब बातें करते थे। एक दिन मदन बाबू ने रोहित से पूछा कि आगे क्या करना चाहते हो। तब रोहित ने जवाब दिया कि वह कुछ नया अविष्कार करना चाहता है। मदन बाबू ने रोहित को इंजीनियरिंग और उसके बाद पीएचडी करने की सलाह दी।

अगले साल दसवीं बोर्ड की परीक्षा थी। बारिश का मौसम आ गया था। उस साल तेज बारिश हो रही थी। दिन में स्कूल और फिर थोड़ा काम करने के बाद रात में ही रोहित को पढ़ाई के लिए समय मिलता था। रात में तेज बारिश होती रहती थी और रोहित एक कोने में बैठकर दीये की रोशनी में पढ़ता रहता था। दसवीं में बहुत ही अच्छे अंकों से रोहित पास हुआ था। मदन-बाबू ने अब उसे आगे की पढ़ाई के लिए सुपर 30 में जाने की सलाह दी। रोहित सुपर 30 का एंट्रेंस टेस्ट क्वालीफाय कर गया। वह सुपर 30 का हिस्सा बन चुका था।

एक दिन मैं जब खाली बैठा था तब उसने अपनी कहानी विस्तार से मुझे बताई और मदन बाबू के प्रति अपना आभार भी व्यक्त किया था। उसकी मेहनत को देखकर सब दंग रहते थे | आईआईटी के रिजल्ट के दिन उसकी खुशियों का ठिकाना नहीं था लेकिन, अच्छी ब्रांच की चाहत में उसने दिल्ली इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लिया। अभी रोहित दिल्ली में बहुत ही अच्छी नौकरी कर रहा है। और गांव का कच्चा मकान अब पक्के मकान में तब्दील हो चुका है।




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आनंद कुमार

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