उत्तरवाहिनी गंगा तट सिमरिया घाट पर विगत दो दिनों में श्रद्धालुओं की उमड़ी भीड़ से लगे महाजाम ने जिला प्रशासन की विधि व्यवस्था की सारी पोल खोल कर रख दी। घाट पर ना सिपाही और ना वोट की व्यवस्था। ना पीने के लिए पानी और ना ही कोई यात्री ठहराव।

बस सिमरिया घाट से सिमरिया धाम के नाम पर बैगर कोई उत्सव के लाखों लोग गंगा स्नान को आ पहुंचे, जो रविवार की सुबह तक आते रहे। इस बीच हर वर्ष करोड़ों रुपए का बंदोबस्ती देने वाला यह घाट महज उगाही का केंद्र बनकर रह गया है।

सिमरिया घाट पर विकास के नाम पर अब तक एक ईंट भी बिहार या केंद्र सरकार की ओर से नहीं लगाया जा सका है। ऐसी स्थिति में सिमरिया का घाट केवल दिनकर कविताओं तक ही सिमट कर रह गया है कि तुझ सा ना सिमरिया घाट अन्य। संभवत: दिनकर ने जिस घाट की कल्पना या जिक्र अपनी काव्य पुस्तक में की थी वो घाट अब महज गंदगियों से भरा पड़ा है।

घाट पर नहीं है किसी तरह की व्यवस्था

प्रतिवर्ष करोड़ों का राजस्व देने वाला यह सिमरिया घाट केवल धन उगाही का केंद्र बनकर रह गया। बरौनी प्रखण्ड से सबसे बड़ा राजस्व देने वाला यह घाट गंदगियों से पटा रहता है। साफ-सफाई, लाइट, घाटों की बैरिकेटिंग, गोताखोर की सुविधा, पुलिस प्रशासन, सूचना केंद्र, कार्यालय ये सब मात्र 45 दिनों के लिए कार्तिक कल्पवास के महीनों में देखा जा सकता है ।

बांकि दिन के लिए ना यहां स्ट्रीट लाइट है और ना हाई मास्ट लाइट की सुविधा। पीने के पानी के लिए गंगा जल के अलावे और कोई विकल्प भी नहीं । विकल्प के रूप में गंगा घाट पर बने होटलों में जाकर पानी खरीदने के अलावे कोई रास्ता नहीं ।

फाइलों में सिमटी रहीं याेजनाएं

नमामि गंगे से लेकर कई तरह की योजनाएं केवल सिमरिया घाट के नाम पर राजनीतिक गलियारों या सरकारी फाइलों पर सिमट कर रह गया है । सरकार के कई मंत्री से लेकर जिला पदाधिकारी की घोषणाएं यहां हर साल रूटीन वर्क की तरह घोषित होते रहे हैं । पर सच इससे इतर रहा है, बेतहाशा गंगा घाट की गंदगी इसके निर्मल घाट को कचरों से पट चुका है।

विकास के नाम पर बेकार पर पड़े हैं शौचालय, मंच भी अधूरा

सिमरिया घाट के विकास के नाम पर साल में कल्पवास मेले के नाम एक बार जीर्ण- शीर्ण पड़े शौचालय की मरम्मति के अलावे यहां कोई काम जमीन पर होता नहीं दिख रहा है। वर्षों पूर्व प्रशासनिक भवन के सामने कला मंच का निर्माण शुरू किया गया था पर अब वह भी खंडहर का रूप ले चुका है। विगत 15 वर्षों से एक अदद सड़क के लिए सिमरिया घाट की सड़कें धूल-कीचड़ से सालों भरी पड़ी रहती है।

विगत 5 वर्षों में घाट से हुई है 13 करोड़ की कमाई

ब्रिटिश काल से ही सिमरिया घाट खैरात की बंदोबस्ती चली आ रही है। पहले यह रूपनगर स्टेशन घाट के नाम से बंदोबस्ती की जाती रही है। 1979-80 के सिमरिया घाट के संवेदक रहे रूपनगर निवासी रामचन्द्र सिंह बताते हैं कि पुल निर्माण से पहले रूपनगर स्टेशन घाट पर प्रत्येक दिन तहसीलदारी की जाती थी।

बाद में राजेंद्रपुल बनने के बाद सिमरिया घाट खैरात के नाम से बंदोबस्ती होने लगी । मेरे द्वारा 1979-80 में 90 हजार, 1980-81 में 1.10 लाख और 1981-82 में 1.30 लाख रुपये में बंदोबस्ती प्रखंड मुख्यालय बरौनी में ही होती रही । 1991 में बीहट निवासी बिपिन कुमार सिंह को यह बंदोबस्ती 3.74 लाख में मिली।

उसके बाद फिर इस घाट से महेन्द्र सिंह और वर्ष 2011 से दिलीप सिंह के नाम से 25 लाख रुपये में बंदोबस्ती शुरू हुई जो वर्ष 2020 में तीन करोड़ पर आ पहुंची है। वर्ष 2015-16 में इस घाट का बंदोबस्त 89 लाख लगभग, 2016-17 में 1.75 करोड़, 2017-18 में 2 करोड़, 2018-19 में 2 करोड़ लगभग के साथ 10 प्रतिशत निबंधन शुल्क लगता रहा। वर्ष 2019-20 में 2 करोड़ व 2020-21 में 2.31 करोड़ के साथ 10 प्रतिशत निबंधन शुल्क और 18 प्रतिशत जीएसटी लिया जाने लगा है।



Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
The journey from Simaria Ghat to Simaria Dham was completed, no development yet

Post a Comment