पटना में बायपास रोड पर ढाबे वाली चाय की दुकान। टेलीविजन के पर्दे पर नीतीश कुमार बोल रहे हैं और लिए हुए हैं लालू प्रसाद के बेटों को निशाने पर। नीतीश बोल रहे हैं कि ‘उन लोगों’ को बस अपने परिवार की चिंता रहती है...।

बड़ी देर से पर्दे पर नजरें गड़ाए राजू ने कहा- ‘ठीके त कह रहे हैं नीतीश कुमार।’ प्रकाश ने भी हामी में सिर हिलाया, लेकिन विनय ने दखल देते हुए कहा, ‘छोड़ ना... लालू प्रसाद पहले ही कह दिए हैं कि हमरा बेटा सब लालटेने उठाएगा। तीर, कमल के साथ कभीओ नहीं जाएगा।’ प्रकाश बोला- ‘हां, छुपाछिपी नहीं करते थे लालू प्रसाद। एक बार तो सत्ता जाने लगी तो पत्नी को ही मुख्यमंत्री बनवा दिए थे।’

विनय ने कहा- ई सब से क्या होता है। सबसे बड़ी पार्टी बिहार में कौन है? जानते हो कि नहीं। सब एक स्वर में बोले- राजद।

विनय ने बात को और ज्यादा साफ करते हुए कहा, ‘लोकतंत्र संख्या बल से चलता है। यहां वोट देने की परंपरा है। जिसको ज्यादा वोट, उसकी सरकार। बिहार में जो जाति में ज्यादा, उसको ज्यादा वोट।’

प्रकाश बोला- ‘हां, लेकिन गठबंधन की राजनीति ने इसको ध्वस्त कर दिया। सबसे बड़ी पार्टी कोई और, सरकार किसी और की। इसलिए गठबंधन में बड़ा जोर है गुरु।’ तीनों चाय की चुस्की के साथ राजनीति का मजा भी ले रहे थे।

विनय ने सवाल दागा- ‘इस बार पुष्पम प्रिया जैसी नई नवेली कंडिडेट भी हैं, जो एक दिन एकाएक अखबार के फ्रंट पेज से बिहार की राजनीति में प्रवेश करती हैं, और पहली राजनीतिक घोषणा भी करती हैं कि वह बिहार की मुख्यमंत्री पद की दावेदार हैं। ई बिहारे में न हो सकता है।’

राजू बोला- ‘हां, इस बार का चुनाव बिहार में गजब का है। एक तो महामारी ऐसी नहीं देखी आज तक और ऊपर से मास्क के साथ वोटिंग कराने की जिद है।’

प्रकाश ने कहा, ‘पता नहीं चुनाव के बाद कोरोना का क्या होगा, और फैल गया तो बवाले हो जाएगा। छह महीना बढ़ाइए देते समय तो क्या घट जाता। चुनाव ड्यूटी में आए जवानों में भी फैल गया तो क्या होगा, किसी को फिकर है?’

राजू ने बीच में रोकते हुए कहा- ‘लोकतंत्र की परिभाषा जानते हो कि नहीं! नहीं जानते हो तो सुन लो- यह जनता के लिए, जनता के द्वारा, जनता का शासन है’।

प्रकाश ने कहा, ‘लेकिन हम तो यही जानते हैं कि यह मूर्खों का शासन है।’

विनय ने कहा, ‘हम बताते हैं ई ऐसे काहे बोल रहा है। ई कहना चाहता है कि अनपढ़ों का शासन है लोकतंत्र।’ प्रकाश ने कहा, ‘देखो कई बार ऐसा होता है राजनीति में कि बहुत पढ़ा-लिखा भी बेईमान हो जाता है और कोई बहुत कम पढ़ा-लिखा भी जनतंत्र का बहुत बड़ा पहरेदार। इसलिए भी राजनीति में चुनाव जीतने के लिए पढ़ाई वाली डिग्री की बाध्यता नहीं है।’

तीनों दोस्तों के पास चाय की लगभग अंतिम चुस्की बची थी। अब बात समेटने की बारी थी। वह भी खत्म हो गई। पैसे देने की बारी आई तो राजू ने पैसे दिए।

दुकानदार सुकेश ने सवाल किया- ‘आप तीनों देखते रहिएगा... ई बेर चुनाव का परिणाम हिला देगा सब को। माहौल टाइट है सरकार का। आप ही लोग बताइए- दो-चार साल में जनता जितनी परेशान हुई, उतनी कभी हुई थी क्या? कोरोना त सब कसर ही पूरा कर दिहिस।’

राजू, प्रकाश और विनय कुछ कहना चाहते थे तभी सुकेश ने तेज आवाज में कहा, 'जो नौकरी देगा, वही वोट लेगा, बाकी हम कुछ नहीं जानते हैं। पैसा कहां से लाइएगा, ई हम सब का टेंशन है क्या?' तीनों दोस्त चुप हो गए। इनकी चाय तो खत्म हो चुकी था, लेकिन बहस शायद आगे बढ़ने को थी।

पीछे से आवाज आई- ‘कहावत सुने हैं न...नाऊ-नाऊ केतना बाल...। त देखते रहिए, अब तो वोटिंग भी शुरू होइए रहा है...10-12 दिन में नतीजो आ जायेगा...20-25 दिन में सरकारो बनिए जाएगी। त देख लेते हैं कौन और केकरा वादा में केतना दम बा...।’ हम इस अंतहीन बहस की इस लाइन को पीछे छोड़ आगे बढ़ गए हैं।



Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
Tejashwi Prasad Yadav Tej Pratap Yadav | Patna Students Voters Debate On Lalu Prasad Yadav Son Tejashwi Yadav and Tej Pratap Yadav

Post a Comment