जिले के दारोगा मर्जी के मालिक बन गए हैं। वे कोर्ट की भी नहीं सुनते हैं। जब मन करता है, तभी गवाही के लिए आते हैं। इंज्यूरी रिपोर्ट या केस डायरी भेजने के लिए जबतक हायर अथॉरिटी का मैसेज नहीं आ जाता, तब तक वे कोर्ट में उसे पेश ही नहीं करते हैं। दारोगा की इस मनमर्जी से जमानती मामलो में परेशनी हो रही है।
जमानत अर्जी पर सुनवाई के लिए प्रतिदिन कोर्ट में सरकारी वकीलों को सीडी नहीं आने की दलील देनी पड़ती है। कई मामले में तो अदालत को डीआईजी या डीजीपी तक को पत्र भेजकर दारोगा की गवाही सुनिश्चित कराने को कहना पड़ता है।
हायर अथॉरिटी को दारोगा को बुलाने को कई रिमाइंडर भी भेजना पड़ता है। समय से केस डायरी नहीं जमा करने या तारीख पर गवाही देने से मुकदमे की सुनवाई प्रभावित होती है। यह मुद्दा लगभग सभी कोर्ट का है। हर माह होने वाली मॉनिटरिंग सेल की बैठक में भी न्यायिक पदाधिकारियों ने डीएम-एसएसपी को यह बातें कहीं हैं।
सरकारी वकीलों को काम में हो रही दिक्कत
लाेक अभियाेजक सत्यनारायण प्रसाद साह ने बताया, कोर्ट के आदेश के बाद संबंधित थाना और वरीय अधिकारियों को इत्तेला की जाती है। लेकिन अब भी शत-प्रतिशत कंप्लायंस नहीं हो रहा है। इससे सरकारी वकीलों को काम करने में दिक्कत हो रही है। मुकदमा प्रभावित हो रहा है। वरीय अधिकारियों को भी समय-समय पर आईओ की चूक की जानकारी दी जाती है।
पॉक्सो कोर्ट के स्पेशल लोक अभियोजक शंकर जयकिशन मंडल ने बताया कि केस डायरी किसी भी कांड का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। हमलोग व्यक्तिगत तौर पर थानेदार को सारे कांड की जानकारी देते हुए केस डायरी, इंज्युरी रिपोर्ट, मेडिकल रिपोर्ट, एफएसएल रिपोर्ट आदि जमा करने के लिए व्हाट्सएप पर जानकारी देते हैं और फोन भी करते हैं।
लापरवाही पर दारोगा पर होगी कार्रवाई
सभी आईओ को स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि वे कोर्ट के निर्देशों का पालन प्राथमिकता पर करें। जो लापरवाही करेंगे, उन पर विभागीय कार्रवाई की जाएगी। - आशीष भारती, एसएसपी
इन चार केस हिस्ट्री से जानिए, दाराेगा किस कदर अदालत में कर रहे हैं लापरवाही
1. जमीन संबंधी एक मुकदमे में जमानत अर्जी पर सुनवाई के लिए कोर्ट ने रंगरा थानेदार को तारीख तय कर केस डायरी (सीडी) जमा करने काे कहा था। थानेदार ने समय पर सीडी नहीं दी। कोर्ट को थानेदार के नाम से शोकॉज और पर्सनल एपिरेंस का निर्देश देना पड़ा।
2. दहेज प्रताड़ना के एक मामले में जमानत अर्जी पर बहस में रसलपुर थाने से केस डायरी मांगी थी। कोर्ट ने आईओ को तारीख तय कर डायरी जमा करने को कहा था। लेकिन आईओ ने ऐसा नहीं किया। कोर्ट ने संबंधित एएसआई से शोकॉज पूछा था। आईओ की लापरवाही से करीब एक माह बाद जमानत पर फैसला आया।
3. नाथनगर के दियारा में हुए नरसंहार कांड में तत्कालीन थानेदार की गवाही के लिए सेशन कोर्ट को डीजीपी तक को रिमाइंडर भेजना पड़ा था। बाद में डीएसपी बने दारोगा को पुलिस मुख्यालय ने पेंशन रोकने की चेतावनी दी, तब वे कोर्ट आए और गवाही दी।
4. जगदीशपुर के पूर्व थानेदार ने मुखिया के लेटरहेड को आधार बनाकर जीवित व्यक्ति को कोर्ट में मृत बताया था। करीब 6 माह बाद जीवित व्यक्ति जब कोर्ट पहुंचा तब राज खुला। कोर्ट ने थानेदार से शोकॉज किया तो वे नाम एक जैसा होने की बात कह खुद को बेगुनाह बताने लगे।
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