जिस बंजर भूमि पर घास नहीं उगते थे, वैसे 442 एकड़ भूमि पर फलदार पौधे लगाए गए हैं। फलदार पौधों के रोपण से अधौरा प्रखण्ड के आधा दर्जन से अधिक गांवों के किसानों की जहां आय बढ़ेगी वहीं उनका पलायन भी रुकेगा। ये सब कुछ राष्ट्रीय कृषि विकास बैंक की पहल पर हुआ है। रिएक्ट संस्था के सहयोग से जिले के अधौरा प्रखण्ड के आधा दर्जन से अधिक गांवों के 442 किसानों को कलस्टर में चिन्हित किया गया है। अब अधौरा पहाड़ी के कंकड़नुमा बंजर भूमि पर हरियाली लाने की दूसरे चरण की भी कवायद शुरू की गई। जिसमें इलाके के 440 किसानों को चिन्हित किए जाएंगे। दरअसल पहाड़ी क्षेत्र के कंकड़नुमा बंजर भूमि को योग्य भूमि बनाया गया है। अब उनमें हरियाली लाई जा रही है। परियोजना से जुड़े विनय कुमार भारद्वाज बताते हैं कि वनवासियों के आय वृद्धि के लिए नाबार्ड के द्वारा यह पहल की गई है। इसके जरिए प्रायोगिक तौर पर पहले चरण की तहत मसानी, वनदिहरा, सलिया, दहार, बड़गांव, बड़गांव खुर्द, खामकला, कान्हानार सहित दर्जन भर से अधिक गांव के 442 किसानों को चिन्हित की गई थी। उनके निजी भूमि पर प्रति किसान प्रति एकड़ भूमि मे 70 फलदार पौधों को लगाया गया था। जिनमें आम और अमरूद के अलावे अन्य फलदार वृक्ष हैं

अधौरा के बड़वान कला गांव की बंजर भूमि पर लगाए गए फलदार पौधे

इन पौधों पर शोध भी किए जा रहे हैं

बता दें कि नाबार्ड व क्षेत्र के वनवासियों के समन्वय से लगाए गए पौधों पर शोध भी किए जा रहे हैं। ऐसे में इन्हें प्रतिस्थापित कर दूसरे पौधे भी लगाए जाएंगे। नाबार्ड कार्यालय के आधिकारिक जानकारी के मुताबिक सरकार की नीति के तहत वनवासियों को चिन्हित कर उनके आय में वृद्धि के लिए यह पहल की गई है। ताकि वनवासियों का पलायन रोका जा सके।

दूसरी इमारती लकड़ी के पौधे भी लगाए जाएंगे

बताया गया है कि पहले चरण के तहत एक क्लस्टर में 442 एकड़ बंजर भूमि में यह पौधरोपण की गई। दूसरे चरण में 440 एकड़ में फलदार वृक्षों के साथ इमारती लकड़ियों के पौधे भी लगाए जाएंगे। जिनमें प्रति एकड़ 80 फलदार पौधे के अलावे इमारती लकड़ियों में सागवान, शीशम, महोगनी, बांस भी लगेंगे।

सृजन के साथ वन वासियों का रुकेगा पलायन

राष्ट्रीय कृषि विकास बैंक के प्रबंधक उदयन ने कहा कि वनवासियों की पलायन रोकने के साथ उनकी आय वृद्धि के लिए यह पहल की गई। पहले चरण में चिन्हित किए गए किसानों के बंजर खेतों मे पौधरोपण किए गए। 60 से 70 फीसद सफलता मिली है। यह ऐसे फलदार पौधे हैं, जो पौधरोपण के 3 सालों बाद फल देने लगते हैं।



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