प्रखंड के नरमा गांव में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के दूसरे दिन भागवत मर्मज्ञ पंडित वेदानंद शास्त्री महाराज ने कहा कि भगवान भक्तों के वश में होते हैं। इसका उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा भगवान श्री कृष्ण ने दुर्योधन के घर का मेवा त्यागकर भक्त विदुर के घर में केले के छिलके और साग खाकर अपने भक्तों का मान बढ़ाने का काम किया। उन्होंने कहा कि हर जीव की यह आंतरिक इच्छा रहती है जो उनके जीवन में कभी भी दुख या समस्या न आए। लेकिन जीव के पूर्व जन्म में अर्जित धर्म और प्रारब्ध पर ही यह निर्भर करता है। उन्होंने कहा कि लोगों को सदैव सात्विक भोजन और सत्य वचन बोलना चाहिए। जैसा हमारा चित्त रहेगा, वैसी हमारी मनोवृति होगी। भगवत प्राप्ति का मार्ग हमारे चित एवं स्वभाव पर निर्भर है। मनुष्य को अहंकार एवं अभिमान से बचना चाहिए । जब भक्त दीन भावना से प्रभु को पुकारता है तो भगवान प्रकट होकर अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। द्रोपदी ने जब श्रीकृष्ण को करुणा भाव से चीरहरण के समय पुकारा तो उन्होंने उनकी लाज बचाई थी और कौरवों के अहंकार को तोड़ा था। उन्होंने कहा इस संसार में मनुष्य का कुछ भी नहीं है। वह सभी ईश्वर की कृपा पर निर्भर है।
नरमा गांव में आयोजित भागवत कथा में प्रवचन सुनते श्रद्धालु।
कथा कहते पंडित वेदानंद शास्त्री।
लोगों काे प्रत्येक दिन चंदन और वंदन करने की शिक्षा दी | मनुष्य को इस संसार में जमा की गई सारी संपत्ति छोड़कर ही जाना पड़ता है। जब यह शरीर ही नश्वर है तो इस धन का क्या महत्व। उन्होंने लोगों काे प्रत्येक दिन चंदन और वंदन करने की शिक्षा दी। मनुष्य को अपनी इंद्रियों पर विजय प्राप्त करना चाहिए नहीं तो वह किस गलत मार्ग पर लेकर जाएगा यह कहना मुश्किल है। अगर आपका कर्म शुद्ध हो जाए तो आपको परम गति की प्राप्ति होगी। बालक ध्रुव की कथा कहते हुए उन्होंने बताया उनके अत्यंत निर्मल प्रेम एवं विश्वास का ही परिणाम था कि भगवान ने उन्हें परम भक्ति का वरदान और उसके लिए ध्रुव लोक का निर्माण का डाला था। उन्होंने मनुष्य को अपने आपको ईश्वर को समर्पित कर सब कुछ उन पर छोड़ देने की शिक्षा दी।
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नरमा गांव में आयोजित भागवत कथा में प्रवचन सुनते श्रद्धालु।
कथा कहते पंडित वेदानंद शास्त्री।
लोगों काे प्रत्येक दिन चंदन और वंदन करने की शिक्षा दी | मनुष्य को इस संसार में जमा की गई सारी संपत्ति छोड़कर ही जाना पड़ता है। जब यह शरीर ही नश्वर है तो इस धन का क्या महत्व। उन्होंने लोगों काे प्रत्येक दिन चंदन और वंदन करने की शिक्षा दी। मनुष्य को अपनी इंद्रियों पर विजय प्राप्त करना चाहिए नहीं तो वह किस गलत मार्ग पर लेकर जाएगा यह कहना मुश्किल है। अगर आपका कर्म शुद्ध हो जाए तो आपको परम गति की प्राप्ति होगी। बालक ध्रुव की कथा कहते हुए उन्होंने बताया उनके अत्यंत निर्मल प्रेम एवं विश्वास का ही परिणाम था कि भगवान ने उन्हें परम भक्ति का वरदान और उसके लिए ध्रुव लोक का निर्माण का डाला था। उन्होंने मनुष्य को अपने आपको ईश्वर को समर्पित कर सब कुछ उन पर छोड़ देने की शिक्षा दी।
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