गया .हमे हमेशा दूसरों के हित का चिंतन करना चाहिए। मैं अर्थात स्व के नष्ट होने से ही इसका उदय होगा। मैं अर्थात आत्मकेंद्रीत विचारों से ही समस्याओं का जन्म होता है। यह विचार आत्मा अर्थात मैं व स्व से आता है। कालचक्र मैदान पर प्रवचन के पहले दिन दलाई लामा ने उक्त बातें कही। उन्होंने कहा कि मैं के बोध से ही अहं जागता है, जिससे राग व द्वेष का जन्म होता है। कर्म की अकुशलता से ऐसे भाव आते हैं। उन्होंने कर्म व उसके परिणाम की महत्ता पर भी प्रकाश डाला। इस दौरान हॉलीवुड स्टार रिचर्ड गेरे, निर्वासित तिब्बत सरकार के राष्ट्रपति लोबसांग सांगेय, सिक्किम सरकार के मंत्री, नामग्याल बौद्ध परंपरा के वरीय लामा सहित अन्य गणमान्य लोग मौजूद थे। उन्होंने पहले दिन 37 प्रैक्टिसेस ऑफ अ बोधिसत्व पर प्रवचन दिया।

हॉलीवुड स्टार रिचर्ड गेरे भी थे मौजूद, दलाई लामा ने 37 प्रैक्टिसेस ऑफ अ बोधिसत्व पर प्रवचन दिया, 30 हजार से अधिक श्रद्धालु पहुंचे

विज्ञान भी करता है स्वीकार
उन्होंने कहा कि विज्ञान भी इसे स्वीकार करता है। मनुष्य सामाजिक है, क्रोध व संदेह में उलझने से शरीर का इम्यून सिस्टम खराब होता है। विज्ञान भी कहता है, चिंता को त्यागे, अन्यथा शरीर का इम्यून खराब होगा। यही वजह है कि प्राचीन भारतीय परंपरा हमेशा चित्त के परिशोधन द्वारा कुशल कर्मों पर बल देता है।

शून्यता है पूर्ण ज्ञान का प्रतीक
चित्त की एक अवस्था है, जिसमें शून्यता व करूणा आत्मा के प्रधान तत्व बन जाते हैं। एक दूसरे में मिलकर यह शून्यता व करूणा को क्रमश: प्रज्ञा व उपाय में बदलते हैं। शून्यता पूर्ण ज्ञान का प्रतीक है, जिसमें सांसारिक दु:ख खत्म हाे जाते हैं। करूणा से व्यक्ति दूसरे के दु:ख से खुद को दु:खी महसूस करता है। वह स्व की परिधि से उपर उठ जाता है।

क्यों कहते हैं शून्यता ही है प्रज्ञा
दलाई लामा अपने प्रवचन में हमेशा शून्यता लाभ को कहते हैं। वह ऐसा इसलिए कहते हैं क्योकि शून्यता में प्रतिष्ठित होने वाला व्यक्ति ही प्रज्ञा प्राप्त करता है। वास्तव में सब शून्य ही शून्य है। जब इस ज्ञान का उदय होता है, तभी अविद्या खत्म होता है। अविद्या के निरोध से संस्कार का निरोध होता है।

चीन से आए श्रद्धालुओं को कहा
दलाई लामा ने प्रवचन के दौरान चीन से आए श्रद्धालुओं को कहा, शून्यता का अभ्यास करें। मैत्री व करूणा जगाएं। 25 दिसंबर को दलाई लामा ने चीन को कहा था, गोली की भाषा छोड़े, सच्चाई का मैत्रीपूर्ण हाथ बढ़ाएं। सच्चाई से ही आगे जीता जा सकता है। चीन में तिब्बत से बौद्ध धर्म का प्रवेश हुआ। वहां आज भी तिब्बती परंपरा मानने वाले ज्यादा हैं।



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प्रवचन करते दलाई लामा।

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