हाइवे पर चल रहे गर्म लू के थपेड़े, लगभग 40 डिग्री का तापमान के बीच सुबह से शाम तक अपने साथियों के खड़े रहते हैं सरदार परमजीत। जो जन्म से ही अपने आंखों से देखने में सक्षम नहीं। गहरे काले रंग के चश्मा डाले और एक हाथ में गुरुद्वारे का भगवा ध्वज और दूसरे हाथ में कभी पानी की बोतल तो कभी फल या खाने का पॉकेट लेकर बीच सड़क पर आ खड़े होते हैं। समान लिए हाथों को जोड़कर गाड़ियों को रोकवा इशारे से नीचे उतरने को कहते हैं। फिर उन्हें खाने पीने को मजबूर कर देते हैं। पैदल गुजर रहे लोगों के पांव पकड़-पकड़कर उन्हें खाने पीने के लिए मिन्नतें करने वाले सरदार परमजीत कहने लगते हैं कि जीवन में ऐसा मौका कभी नहीं आएगा। श्रृष्टि का यह सबसे संकट काल है।
सासाराम के जानी बाजार स्थित गुरुद्वारा रोड निवासी सरदार परमजीत 24 मार्च से ही सुबह दस बजे अपने दर्जन भर साथियों अजीत सिंह, सुचित सिंह, राजेश सिंह, सोनू सिंह, विकास सिंह, राजन सिंह, अमरजीत सिंह, कमलजीत सिंह, परमजीत सिंह, पिंटू सिंह, शंभु सिंह और पच्चू सिंह के साथ आ पहुंचते हैं। आधे साथी खाना बनाने में जुटते हैं और आधे सड़क पर लोगों को रोक-रोक खिलाने में लग जाते हैं।

पांच हजार से ज्यादा लोगों को उपलब्ध कराया वाहन
बुधवार को गया जिला के टेकारी से साईकिल पर सवार होकर चले पंद्रह लोगों के एक पारिवारिक समुह को सासाराम से लौट रहे अति आवश्यक सेवा के एक ट्रक में बैठाकर परमजीत व उनके साथियों ने उत्तरप्रदेश के आजमगढ़ के लिए रवाना कराया। इस परिवार में एक तीन माह का बच्चा भी था। जिसके मां की दूध का बोतल थमाते हुए परमजीत के साथियों ने आगे के रास्ते के लिए कुछ खाना भी दे दिया।



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Sardar Paramjit is not seen from birth, but feels the hunger and thirst of people passing through the highway

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