कोरोना महामारी की इस दौड़ में लोग जहां अपने घरों से निकलने में डरते हैं। वहीं मानवता की रक्षा के लिए शहर के युवा ने निर्भीक होकर व अपने मजहब से ऊपर उठकर दूसरे की जान बचाकर मिसाल कायम किया। अलीनगर निवासी मोहम्मद अली की पत्नी शबाना गर्भवती थी। तबीयत खराब होने पर उसे अलीनगर पीएससी में भर्ती कराया गया।

उसकी गंभीर हालत देख डॉक्टर ने कम से कम चार यूनिट ब्लड चढ़ाने की बात कही। ब्लड की जरूरत को सुन परिजनों ने अपने संबंधियों से संपर्क किया। लेकिन लॉकडाउन के कारण सभी ने अस्पताल आने में असमर्थता दिखाई। मौत के मुहाने पर पहुंची महिला के लिए शहर के एक युवक ने न सिर्फ अपना खून देकर उसकी जान बचाई बल्कि हिन्दू-मुस्लिम एकता के साथ-साथ इंसानियत की भी मिसाल पेश की।

निराश हो चुका था : मो. अली

शबाना के पति मो. अली ने बताया कि उसकी पत्नी मौत के मुंह पर खड़ी थी। उसने अपने क्षेत्र के विधायक, स्थानीय जनप्रतिनिधि व संबंधियों से मदद की गुहार लगाई। लेकिन कहीं से उसे मदद नहीं मिली। जिसके बाद वह निराश हो चुका था। लेकिन उसके लिए जीवन रक्षक टीम के युवा फरिश्ता बनकर आए और उनकी पत्नी को खून देकर राैशन ने उन्हें एक नया जीवन दिया है। जिसको वह कभी भूल नहीं पाएंगे।
जीवन रक्षक टीम ने दी नई जिंदगी
निजी संस्था जीवन रक्षक टीम असहाय और बेसहारा लोगों को खून देकर उसकी जान बचाने का काम करती है। जैसे ही यह बात टीम के सामने आई टीम के लोग सक्रिय हुए और टीम के सदस्य रौशन कुमार खून देने के लिए अस्पताल पहुंच गए। ब्लड डोनर रौशन ने कहा कि कुछ महीने पहले ही जीवन रक्षक टीम से जुड़े थे। आज जब शबाना के बारे जानकारी मिली तो खून देने अस्पताल पहुंच गया। शबाना को खून देने के बाद मन शांति व आत्मसंतुष्टि महसूस हो रही है। उनकी नजर में न कोई हिन्दू है, न मुसलमान वो इंसानियत के नाते मदद को तैयार रहते हैं।



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Relatives refused to give blood for fear of Kairana, Ration saved pregnant Shabana's life

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