प्रवासी श्रमिकों को हुनर के हिसाब से राज्य में ही काम मिले इसके लिए राज्य सरकार ने कम पूंजीऔर जमीन पर छोटे उद्योग लगाने के प्रति फोकस बढ़ा दिया है। स्थानीय स्तर पर कच्चे माल की उपलब्धता, हुनर के आधार पर छोटी-छोटी इकाइयों का क्लस्टर (झुंड) विकसित करने की योजना बनाई गई है। हर जिले में कम से कम ऐसे दो क्लस्टर विकसित होंगे।
इसके चयन की जिम्मेदारी जिला उद्योग केंद्रों के महाप्रबंधकों को दी गई है। पहले से चल रहे क्लस्टर किस तरह काम करें, इसके बारे में भी जानकारी जुटाई जा रही है। उद्योग मंत्री श्याम रजक ने कहा कि लोगों को एक तरह के उद्योग एक ही जगह लगाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।
राज्य में पुराने के साथ-साथ नए क्लस्टर विकसित किए जाएंगे। दरअसल, क्लस्टर में सरकार जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर और कॉमन फैसिलेंशन सेंटर बनाकर उद्यमियों को देगी। उद्यमियों को सारी सुविधाएं एक जगह उपलब्ध होंगी। यानी जरूरी मशीनें जो सामान्य उद्यमियों के लिए खरीद पाना संभव नहीं है, उसे सरकार उपलब्ध करवाती है।
उद्यमी इन मशीनों का उपयोग अपने उत्पाद की बेहतरी के लिए करते हैं। हालांकि, कुछ जगहों को छोड़ दें तो राज्य में क्लस्टर की स्थिति अभी बहुत अच्छी नहीं है। पटना में पीतल, नालंदा में लेदर, झूला व सिलाव, भागलपुर व गया में हैंडलूम, पश्चिमी चंपारण में तांबे और कांसे के बर्तनों और मधुबनी में हस्तशिल्प क्लस्टर में तो थोड़ा बहुत काम हो रहा है। अन्य स्थानों की स्थिति अच्छी नहीं है।
मखाना क्लस्टर विकसित करने में मदद करेगा केंद्र
दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर, सहरसा, सुपौल, सीतामढ़ी, पूर्णिया, कटिहार आदि जिलों में मखाना का उत्पादन बड़े पैमाने पर होता है। प्रोसेसिंग की यूनिट पूर्णिया और कटिहार में है। कटिहार में पहले से मखाना क्लस्टर प्रस्तावित भी है। पीएम राहत कोष से मखाना क्लस्टर के लिए 1000 करोड़ का प्रावधान है। बिहार में देश के कुल मखाना उत्पादन का 90% होता है।
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