(भैरव लाल दास) सरदार हरिहर सिंह के मंत्रिमंडल के लिए भी राजा रामगढ़ कामाख्या नारायण सिंह आफत बनकर ही आए। कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा दोषी करार दिए जाने के कारण दिल्ली के कांग्रेस नेता उन्हें मंत्रिमंडल से हटाने के लिए आमादा थे। जगजीवन राम की इस लॉबी में कामराज और सी. सुब्रह्मणियम आदि थे।
उधर एसके पाटिल और वाई बी चह्वाण का दूसरा धड़ा समर्थन में था। कांग्रेस अध्यक्ष एस निजिलिंगप्पा ने हरिहर सिंह का बचाव किया जिसके कारण सी. सुब्रह्मणियम ने 8 मार्च 1969 को कार्यकारिणी समिति से इस्तीफा दे दिया। 12 मार्च को दिल्ली से पटना संकेत आया कि या तो राजा कामाख्या नारायण सिंह मंत्रिमंडल से हटें या मुख्यमंत्री सरदार हरिहर सिंह गद्दी छोड़ें। 28 मार्च को राजा ने इस्तीफा दे दिया। सरकार तत्काल बच गई। 17 अप्रैल को मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ। राजा रामगढ़ की मां शशांक मंजरी सिंह को मंत्री बना देना राजनीतिक कलाबाजी की पराकाष्ठा ही थी।
लेकिन इससे भी बात नहीं बनी। 20 जून 1969 को बिहार विधान सभा में पशुपालन विभाग के बजट पर बहस हो रही थी। नदी घाटी मंत्री जगदेव प्रसाद के शोषित दल के योजना राज्य मंत्री महावीर पासवान के साथ हुल झारखंड के हेम्ब्रम ने सदन में ही पार्टी बदल ली। मुख्यमंत्री हरिहर सिंह को इस्तीफा देना पड़ा। 21 जून को संयुक्त मोर्चा की तीसरी बार और भोला पासवान शास्त्री दूसरी बार मुख्यमंत्री बने। यह सरकार सिर्फ 9 दिन चली।
दो असंतुष्ट कांग्रेसियों को मंत्री बनाने से नाराज जनसंघ ने लिया समर्थन वापस
जनसंघ के 34 विधायकों ने इस कारण समर्थन वापस ले लिया कि दो कांग्रेसी असंतुष्टों को मंत्री बना दिया गया है। 4 जुलाई, 1969 को राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया जो 16 फरवरी 1970 तक रहा। इस बीच 7 फरवरी, 1970 को मुधोलकर कमीशन ने राज्यपाल को अपना प्रतिवेदन दे दिया। इसमें 5 मंत्री एवं 13 अन्य लोगों को दोषी करार दिया गया था।
फरवरी में सीएम बने दारोगा राय, दिसंबर में गिर गई उनकी सरकार
1969 में कांग्रेस पार्टी में विभाजन हुआ। केबी सहाय, एस एन सिन्हा, महामाया बाबू आदि कांग्रेस (ओ) में चले गए। 6 दिसंबर 1969 को कांग्रेस के 60 विधायकों ने हरिहर सिंह के स्थान पर दारोगा प्रसाद राय को पार्टी विधायक दल का नेता चुन लिया। अय्यर कमीशन अपना रंग दिखा चुका था। उधर भी खिचड़ी पक रही थी।
7 फरवरी 1970 को संयुक्त विधायक दल (एसवीडी) से रामानंद तिवारी और 10 फरवरी को एसएसपी के अध्यक्ष पद से कर्पूरी ठाकुर ने इस्तीफा दे दिया। सीपीआई, पीएसपी, बीकेडी, शोषित दल, झारखंड पार्टी, कांग्रेस (आर) सहित 6 पार्टियों के सहयोग से दारोगा प्रसाद राय 16 फरवरी 1970 को मुख्यमंत्री बने। लेकिन 18 दिसंबर को ही इनके खिलाफ विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव लाया गया और 18 वोट से सरकार गिर गई।
ललित नारायण मिश्र और राम लखन सिंह यादव ने पलट दी बाजी
दारोगा प्रसाद राय की सरकार गिराने में मुख्य भूमिका केंद्रीय मंत्री ललित नारायण मिश्र और राम लखन सिंह यादव की रही। इन्हें लगा कि वे राजनीति के ‘सुपर बॉस’ नहीं रहे जैसा कभी केबी सहाय या महामाया बाबू रहा करते थे। ब्राह्मण लॉबी भी दारोगा बाबू के विरोध में सक्रिय थी क्योंकि विद्याकर कवि और रमेश झा को मंत्री नहीं बनाया गया था। विवाद पीडब्लूडी के इंजीनियरों की पोस्टिंग को लेकर हुआ। अय्यर कमीशन में नाम आने के कारण दारोगा बाबू ने रामलखन सिंह यादव के घर पर सीबीआई की ‘रेड’ करवाकर यह जता दिया था कि वे किसी के दबाव में रहने वाले नहीं हैं।
रामजयपाल सिह यादव ने ठोंका दावा और निपट गए कर्पूरी ठाकुर
कांग्रेस (ओ), जनसंघ, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी को मिलाकर संयुक्त विधायक दल के कर्पूरी ठाकुर ने 22 दिसंबर 1970 को मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लिया और यह सरकार 161 दिनों अर्थात 1 जून 1971 तक चली। रामजयपाल सिंह यादव ने दावा किया कि 312 सदस्यीय विधानसभा में उन्हें 170 विधायकों का समर्थन प्राप्त है। कर्पूरी ठाकुर ने इस्तीफा दे दिया। और 2 जून 1971 को भोला पासवान शास्त्री मुख्यमंत्री और रामजयपाल सिंह यादव उप मुख्यमंत्री बने। इसे सीपीआई, पीएसपी, बीकेडी, फॉरवर्ड ब्लॉक, हुल झारखंड, शोषित दल, हिन्दुस्तानी शोषित दल का समर्थन मिला। 16 जून और 6 सितंबर को मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ।
कांग्रेस के बड़े दिग्गज केदार पाण्डेय, नागेन्द्र झा, एलपी शाही, चंद्रशेखर सिंह, रामदुलारी सिन्हा, रफीक आलम, जब्बार हुसैन, बालेश्वर राम, टी.मोचीराय मुंडा आदि मंत्री बनाए गए। उधर, सीपीआई इस बात पर अड़ी थी कि गैर-कांग्रेसी को मुख्यमंत्री बनाया जाना चाहिए। 1955-62 में भारत सेवक समाज निधि के दुरूपयोग का ललित नारायण मिश्र और लहटन चौधरी पर लगाए गए आरोपों की जांच के लिए गठित दत्ता कमीशन के प्रतिवेदन को लेकर भी भारी असंतोष था। 10 जनवरी, 1972 को भोला पासवान शास्त्री ने इस्तीफ दे दिया और बिहार में फिर से राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया।
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