भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि एक राष्ट्र, एक चुनाव सिर्फ चर्चा का विषय नहीं है, बल्कि यह भारत की जरूरत है। देश में हर कुछ माह में कहीं न कहीं बड़े चुनाव होते रहते हैं। इससे विकास कार्यों पर विपरीत प्रभाव तो पड़ता ही है, साथ ही बड़े पैमाने पर धन का अपव्यय भी होता है।
ऐसे में इस मुद्दे पर गहन अध्ययन और मंथन आवश्यक है। वह वन नेशन, वन इलेक्शन विषय पर आयाेजित परिचर्चा को संबोधित कर रहे थे। सांसद मनोज तिवारी ने भी इसमें शिरकत की। संचालन डॉ. संजय मयूख ने किया।
भूपेंद्र यादव ने कहा कि एक साथ चुनाव होने से देश व राज्यों की विकास योजनाओं को रफ्तार मिलेगी। बार-बार चुनाव और उसके कारण लगने वाली आचार संहिता से विकास कार्य बाधित नहीं होंगे। इससे चुनाव पर होने वाले खर्चे की बचत भी होगी। हालांकि, उन्होंने वन नेशन, वन इलेक्शन के लिए फिलहाल कानून बनाने की संभावना से इनकार किया। कहा- सभी राजनीतिक दलों में आपसी सहमति के बाद ही इसे लागू किया जाएगा। क्षेत्रीय दलों के नुकसान की आशंका काे खारिज करते हुए कहा कि 70 साल में मतदाता बहुत परिपक्व हो चुके हैं।
परिचर्चा क्यों
चुनाव सुधार अभियान के तहत एक राष्ट्र, एक चुनाव के मुद्दे पर जनजागरण और राष्ट्रीय सहमति बनाने के लिए भाजपा ने इस अभियान की शुरुआत की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कई अवसर पर इसकी चर्चा की है और इससे होने वाले फायदे को बताया है। इसी अभियान के तहत रविवार को डॉ. संजय मयूख ने वेबिनार का आयोजन किया।
ये हाेंगे लाभ
- इससे राजनीतिक स्थिरता आएगी।
- बार-बार चुनाव होने से क्षेत्रीय दलों पर अधिक आर्थिक बोझ पड़ता है। एक बार चुनाव होने से उन्हें ज्यादा आसानी होगी।
- करदाताओं के पैसे बचेंगे। इन पैसों का इस्तेमाल जनता की भलाई के लिए किया जा सकेगा।
- वन नेशन-वन इलेक्शन नई खोज नहीं है। आजाद भारत का पहला लोकसभा चुनाव भी इसी तर्ज पर हुआ था। 1952, 1957, 1962 और 1967 का चुनाव इसी अवधारणा पर कराया गया था।
- राज्यों को बार-बार आचार संहिता का सामना नहीं करना पड़ेगा।
- कालेधन पर अंकुश लगेगा।
- अधिक संख्या में नागरिक अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकेंगे।
- चुनावी ड्यूटी में तैनात होने वाले सुरक्षाबलों का समय बचेगा। अभी हर चुनाव में उन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने में खतरे के साथ खर्च भी बहुत होता है।
1983 में पहली बार चुनाव आयोग ने दिया था सुझाव
चुनाव आयोग ने पहली बार साल 1983 में इसे लेकर सुझाव दिया था। लॉ कमीशन ने भी वर्ष 1999 में वन नेशन, वन इलेक्शन की वकालत की थी। दिसंबर 2015 में लोकसभा और विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव आयोजित करने की व्यवहार्यता रिपोर्ट पर संसद की स्टेंडिंग कमेटी ने एक साथ चुनाव आयोजित करने पर वैकल्पिक और व्यावहारिक तरीका अपनाने की सिफारिश की थी। 2018 में संसद की स्टैंडिग कमेटी ने भी इस मुद्दे पर रिपोर्ट तैयार की थी, जिसमें इसके कई फायदे गिनाए थे।
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