मानव को ईश्वर की भक्ति करनी चाहिए। र्इश्वर स्थूल दृष्टि से देखने की वस्तु नहीं है, बल्कि आत्मा से महसूस की जा सकती है। निरंतर प्रयास के बाद ही यह संभव है। यह बातें महर्षि मेंही आश्रम कुप्पाघाट के स्वामी विवेकानंद ने देवी बाबू धर्मशाला में संतमत-सत्संग समिति की ओर से चल रहे दो दिवसीय प्रवचन समापन के दौरान सोमवार को कही। उन्होंने नवधा भक्ति की महत्ता को बताया। कहा कि भगवान राम ने वनगमन के दौरान माता सबरी को नवधा भक्ति का ज्ञान दिया था। भक्ति के विभिन्न प्रकारों के तहत गुरु की भक्ति को भी प्रतिपादित किया गया है। उन्होंने कहा कि ध्यान के माध्यम से ही ईश्वर का अनुभव हो सकता है। इन्द्रियों से शरीर की पहचान होती है। शरीर और संसार से पार हो जाना ही मोक्ष है।

सत्संग सुनने सुधरता है जीवन

स्वामी स्वरूपानंद ने कहा कि जीवन में सुख-शांति का मार्ग अपनाए बिना परमात्मा की प्राप्ति असंभव है। परमात्मा की प्राप्ति आत्मा के माध्यम से संभव है। सत्संग के माध्यम से ही मानव जीवन का कल्याण हो सकता है। हर मनुष्य को अपना कर्म ठीक तरीके से करना चाहिए। विवेकानंद और प्रदीप ने भजन गाकर श्रद्धालुओं को भक्तिमय कर दिया। संचालन धर्मराज राय ने किया। इस मौके पर स्वामी विवेकानंद, स्वामी विद्यानंद, राजकुमार, शंभु प्रसाद, सुबोध मंडल, जयप्रकाश गुप्ता, कृष्ण कुमार अग्रवाल, सुनील खेतान, कैलाश अग्रवाल, गिरिवर प्रसाद गुप्त आदि मौजूद थे।

प्रवचन देते स्वामी विवेकानंद, स्वामी विद्यानंद और स्वामी स्वरूपानंद।



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