पटना एम्स में नेफ्रोलॉजी विभाग और मधुमेह के लिए एंडोक्राइनोलॉजी विभाग को डॉक्टर अब तक नहीं मिल रहे हैं। एम्स के चालू हुए छह साल हाे गए मगर अबतक यहां किडनी के इलाज के लिए नेफ्रोलॉजी के डॉक्टर को लेकर दो बार विज्ञापन निकालना बेकार गया है। दो बार विज्ञापन के बावजूद साक्षात्कार के लिए एक भी डॉक्टर नहीं अाए। अस्पताल के निदेशक डॉ. प्रभात कुमार सिंह ने कहा कि दूरी के अलावा इसका और कोई कारण नहीं दिखता। ऐसे में इसके लिए फिर से विज्ञापन निकाला जाएगा। डॉक्टर मिलते ही नेफ्रोलॉजी विभाग की तमाम सुविधाएं मरीजों को मिलने लगेंगी। एम्स में बाकी सभी विभागाें के अोपीडी और इंडोर की सुविधा बहाल हो चुकी है। करीब 31 मॉड्यूलर अाेटी और कैथ लैब भी हैं। संस्थान सूत्रों के अनुसार विज्ञापन प्रकाशित करने का समय उपयुक्त नहीं होने से भी इस तरह की समस्या उत्पन्न होती है। यानी किसी चिकित्सक ने कहीं ज्वाइन कर लिया और उसके बाद उसे कुछ बेहतर मौका भी मिलता है तो वह शिफ्ट करना नहीं चाहता है।

गर्भावस्था में बीपी बढ़ने से अागे हार्ट अटैक का खतरा

पटना | गर्भवती महिलाओं का बीपी बढ़ने से दूरगामी प्रभाव पड़ता है। ऐसी महिलाओं को 40 से 70 साल तक की उम्र में हार्ट अटैक, स्ट्रोक आदि का खतरा अधिक रहता है। यदि डायबिटीज या मोटापा है तो 80 फीसदी तक इन रोगों का खतरा बढ़ जाता है। हृदय रोग विशेषज्ञों के दिल्ली में आयोजित 71वें राष्ट्रीय वार्षिक सम्मेलन में इंदिरा गांधी हृदय रोग संस्थान के उपनिदेशक डॉ. हरेंद्र कुमार ने यह बात कही। डॉ. हरेंद्र को सम्मेलन में नेशनल फैकल्टी के रूप में आमंत्रित किया गया था।

डायलिसिस की मिल रही सुविधा

वैसे अस्पताल में पीपीपी मोड पर पांच डायलिसिस मशीन की सुविधा बहाल की गई है। यह सुविधा उन मरीजाें काे मिलती है, जाे किसी दूसरी बीमारी की वजह से भर्ती हाेते हैं। अगर उन्हें किडनी की भी परेशानी हाेती है ताे डायलिसिस किया जाता है। इसके लिए करीब 3300 रुपए खर्च करने पड़ते हैं। किडनी के इलाज की व्यवस्था नहीं हाेने के कारण अाेपीडी में अाने वाले इस बीमारी के मरीजाें का डायलिसिस नहीं हाेता है।



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