महाबोधि सोसाइटी आॅफ इंडिया बोधगया शाखा के जयश्री महाबोधि विहार में शनिवार से भगवान बुद्ध व उनके दो शिष्यों सारिपुत्र व मोग्गलान की पवित्र अस्थि कलशों की प्रदर्शनी शुरू हुई। तीन दिवसीय इस प्रदर्शनी को देखने के लिए विश्व के कई देशों से बौद्ध श्रद्धालु बोधगया पहुंच चुके हैं। इन अस्थि कलशों को 2006 में यहां लाया गया था व स्थापित किया गया था। जयश्री महाबोधि विहार के वार्षिकोत्सव के दौरान प्रतिवर्ष इनकी तीन दिवसीय प्रदर्शनी लगायी जाती है, ताकि बौद्ध श्रद्धालु इनका दर्शन लाभ उठा सके। 2011 में इन अस्थि कलशों को भूटान भी ले जाया गया था। भगवान बुद्ध की अस्थि कलश की सत्यता को लेकर विद्वानों में मतभेद हैं।

श्रीलंका से मिली बुद्ध की अस्थि कलश: महाबोधि सोसाइटी परिसर में भगवान बुद्ध की रखी पवित्र अस्थि कलश को श्रीलंका से लाया गया है। इसे ब्रिटिश शासन के दौरान 1937 में महियंगम स्तूप से खुदाई के दौरान प्राप्त किया गया था। बाद में असिगिरिया के बौद्ध मंदिर में रखा गया था। सिंहली बौद्ध साहित्य महावंश में उल्लेख है कि भगवान बुद्ध ज्ञान की प्राप्ति के नौ माह बाद श्रीलंका गये थे और वहां उन्होंने अपने बाल को रखा था, जिसपर महियंगम में एक स्तूप का निर्माण कराया गया था।

नब्बे साल बाद हुई वापसी


महाबोधि सोसाइटी के प्रयास से 14 मार्च 1947 को इन अस्थि कलश को श्रीलंका भेजा गया। वहां उसे केलनिया के राजा महाविहार में स्वर्ण मंजूषा में रखा गया व लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं ने उसका दर्शन किया। वहां जनवरी 1944 तक उसे रखा गया था।

1949 में आया भारत

12 जनवरी 1949 में इसे भारत लाया गया। 13 जनवरी को सोसाइटी के कोलकाता स्थित मुख्यालय में लाया गया, जहां प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने इसे सोसाइटी के अध्यक्ष डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को सौंपा। बाद में इसके कुछ अंश को सांची स्थित संग्रहालय में भी रखा गया। बोधगया में कोलकाता स्थित मुख्यालय से अस्थि कलश को लाकर रखा गया है।

सांची से मिला था शिष्यों का अस्थि कलश


भगवान बुद्ध के दोनों शिष्यों की अस्थि कलश सांची के स्तूप संख्या तीन से मिली थी। 1851 में कनिंघम ने खुदाई के दौरान इसे निकाला था। 1.5 मीटर से अधिक लंबे पत्थर से ढ़के पत्थर की दो संदूकें मिली थी जिनके ढ़क्कन पर सारिपुतस और महामोगलानस शब्द अंकित थे। संदूक के अंदर हड्डी के छोटे टुकड़ों के साथ मोती, लाजवर्द, स्फटिक सहित कई कीमती पत्थरों के मनके थे। इन अस्थि कलश को बाद में लंदन के अल्बर्ट संग्रहालय में रखा गया था।


अस्थि कलश की पूजा-अर्चना करते श्रद्धालु।



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