(रूपेश रूपम) भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की ओर से प्रत्येक वर्ष 18 अप्रैल को विश्व धरोहर दिवस मनाया जाता है। हर बार नालंदा में भव्य आयोजन किया जाता जिसमें देश सहित विदेशों से भी पर्यटक शामिल होते थे।बचाने के लिए प्रार्थना कर रहे हैं। यह भग्नावशेष विश्व धरोहर की सूची में शामिल होने वाला बिहार का दूसरा और देश का 33वां धरोहर है। कोरोना वायरस को लेकर सभी ऐतिहासिक स्मारक 17 मार्च से बंद हैं। ऐसा पहली बार है कि 18 अप्रैल को विश्व धरोहर दिवस पर स्मारकों में पर्यटकों की चहलकदमी नहीं दिखी।
डीएम योगेंद्र सिंह ने बताया कि लॉकडाउन के कारण विश्व धरोहर सहित सभी पर्यटन स्थलों पर ताला लटका हुआ है। उन्होने बताया कि इतिहासकारों के अनुसार करीब 780 साल तक पढ़ाई हुई थी। तब बौद्ध धर्म, दर्श, चिकित्सा, गणित, वास्तु, धातु और अंतरिक्ष विज्ञान की पढ़ाई का यह महत्वपूर्ण केन्द्र माना जाता था।
14 हेक्टेयर में भग्नावशेष
प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय का भग्नावशेष 14 हेक्टेयर में फैला है। खुदाई में मिले अवशेष से पता चलता है कि सभी निर्माण लाल पत्थर से किया गया है। परिसर का रुख दक्षिण से उत्तर की ओर है। मठ व विहार परिसर के पूर्व दिशा में स्थित थे। जबकि मंदिर या चैत्य पश्चिम दिशा में। मुख्य इमारत 1 नम्बर बिहार थी। भग्नावशेष में अब भी दो मंजिली इमारतें मौजूद है जो मुख्य आंगन के समीप बनी है। छोटा सा प्रार्थनागृह भी भग्नावशेष में मौजूद है जहां भुगवान बुद्ध की प्रतिमा स्थापित है और यह भंग अवस्था में है।
आसपास के गांव की अर्थव्यवस्था थी निर्भर
कहा जाता है कि आसपास के गांवों की अर्थव्यवस्था प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय से जुड़ी थी। विश्वविद्यालय के जरूरत के सामान आसपास के गांवों से ही जुटा लिया जाता था। नये स्थापित किये गये यूनिवर्सिटी में ऐसी ही व्यवस्था की जा रही है।
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