घर लौटते मजदूरों, उनके बच्चों की मौतों के वाकये बदस्तूर जारी हैं। ऐसी 6 घटनाएं और सामने आई हैं। पहली घटना बिहार के मुजफ्फरपुर में हुई, जहां मकसूद आलम नाम का एक मजदूर दूध के लिए स्टेशन पर भटकता रहा और साढ़े चार साल का बेटा तड़प-तड़पकर चल बसा।

मकसूद श्रमिक स्पेशल ट्रेन में दिल्ली से परिवार समेत घर लाैट रहा था। बेटा रास्ते में भीषण गर्मी की वजह से बीमार पड़ गया। मुजफ्फरपुर पहुंचते-पहुंचते हालत काफी बिगड़ गई। इससे पहले कि उसे दूध मिल पाता, वह चल बसा। मकसूद का परिवार दिल्ली में अपना सारा सामान बेचकर सीतामढ़ी लौट रहा था।
ट्रेनें रुकीं, तब पता चला कि
पांच मौतें हो चुकी हैं

  • बलिया, बनारस और दानापुर में 5 स्पेशल ट्रेनाें में 5 मजदूराें के शव मिले। ये ट्रेनें मुंबई, सूरत समेत 5 अलग-अलग शहरों से आई थीं। इनमें से तीन पहले से बीमार थे।
  • मुंबई से हावड़ा जाने के लिए निकले 29 साल के हिफजुल रहमान की रायपुर में माैत हाे गई।
  • उत्तरप्रदेश के चंदाैली में पटरी पर साे रहे चार श्रमिकाें की श्रमिक स्पेशल ट्रेन से कटकर माैत हाे गई। इनमें से तीन महिलाएं थीं।

कटिहार: दाे दिन बाद भी अपनी मां काे ही ढूंढ़ रहा डेढ़ साल का रहमत
यह कितना दर्दनाक है कि किसी तीन साल के बच्चे की मां की मौत हो जाए और वह अपनी मां के शव के साथ खेलता रहे। रहमत को यह पता नहीं कि अब उसकी मां नहीं रही। पिता पहले ही छोड़ चुका है। दाे दिन बाद भी रहमत मां-मां ही कहता है। बड़ा बेटा अरमान तो थोड़ा समझता भी है, लेकिन रहमत काे कोई न कोई कुछ न कुछ हाथ में देकर बहालाने की काेशिश करता है।

कभी बिस्कुट से तो कभी टॉफी देकर। कभी-कभी नाना-नानी के गोदी में वह खेलता रहता है। लेकिन उसकी आंखें लगता है कि मां काे ही तलाश रही है। अब दोनों बच्चे माता-पिता विहीन हैं। नाना-नानी भी उम्रदराज है। कैसे इन बच्चों की परवरिश होगी। भास्कर टीम बुधवार काे उसके घर पहुंची ताे यह दारुण दृश्य दिखा।



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रहमत को यह पता नहीं कि अब उसकी मां नहीं रही। पिता पहले ही छोड़ चुका है। दाे दिन बाद भी रहमत मां-मां ही कहता है।

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