शहर के गोशाला परिसर स्थित श्रीकृष्ण मंदिर में रेजांगला के वीर अहीरों को शहर के युवाओं, बुद्धिजीवियों और यदुवंशियों के द्वारा श्रद्धांजलि दी गई। कार्यक्रम की अध्यक्षता सुशांत कुमार उर्फ बमबम यादव ने की। उन्होंने कहा कि रेजांगला की गौरव गाथा हर लिहाज से शहादत की अनूठी दास्तां हैं।
बिना किसी तैयारी के अहीरवाल के वीर जवानों ने 18 नवंबर 1962 को लद्दाख की दुर्गम बर्फीली चोटी पर शहादत का ऐसा इतिहास लिखा, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। यह यहां के वीरों के जज्बे का ही परिणाम था, जिसके चलते चीन सीज फायर के लिए मजबूर हो गया था। बेशक भारत को इस युद्ध में अधिकारिक रूप से जीत नसीब नहीं हुई, परंतु सामरिक दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानी जाने वाली रेजांगला पोस्ट पर यहां के जांबाज जवानों ने हजारों चीनी सैनिकों को मार गिराया था। रेजांगला पोस्ट पर वर्ष 1962 की इस लड़ाई में तत्कालीन 13 कुमाऊं बटालियन के कुल 124 जवान शामिल थे, जिनमें से 114 शहीद हो गये थे। शहादत देने वालों में अधिकांश जवान अहीरवाल क्षेत्र के थे। कुर्बानी देने से पूर्व इन जवानों ने चीन के 1300 जवानों को मौत के घाट उतार दिया था। उन्होंने कहा कि विशेष बात यह भी थी कि चीन जहां पूरी तैयारी के साथ युद्ध मैदान में उतरा था। जबकि भारत को चीनी आक्रमण का आभास भी नहीं था।
बमबम यादव ने कहा कि भारतीय वीरों के सामने परीक्षा की घड़ी 17 नवंबर की रात उस समय आई, जब तेज आंधी-तूफान के कारण रेजांगला की बर्फीली चोटी पर मेजर शैतान सिंह भाटी के नेतृत्व में मोर्चा संभाल रहे सी कंपनी से जुड़े इन 124 जवानों का संपर्क बटालियन मुख्यालय से टूट गया। ऐसी ही विषम परिस्थिति में 18 नवंबर को तड़के चार बजे युद्ध शुरू हो गया। वीरता का सम्मान करते हुए भारत सरकार ने कंपनी कंमाडर मेजर शैतान सिंह को मरणोपरांत परमवीर चक्र से अलंकृत किया था। जबकि इसी बटालियन के आठ अन्य जवानों को वीर चक्र, चार को सेना मैडल व एक को मैंशन इन डिस्पेच का सम्मान दिया था। इसके अलावा 13 कुमायूं के सीओ को एवीएसएम से अलंकृत किया गया था।
भारतीय सेना के इतिहास में किसी एक बटालियन को एक साथ बहादुरी के इतने पदक अब तक कभी नहीं मिले। सरकार ने चार्ली कंपनी की वीरता को देखते हुए बाद में एक अहम निर्णय लेते हुए कंपनी का दोबारा गठन किया तथा इसका नाम रेजांगला रखा। मंच संचालन आकाश यदुवंशी ने किया। मौके पर कोषाध्यक्ष सारंग तनय, सचिव नीतीश कुमार उर्फ जापानी यादव, संयोजक हिमांशु राज, माधव यादव, रॉय प्रिंस, विकास यादव, अमरेश कुमार, नवीन, प्रिंस, रामकुमार, ज्योतिष, रंजीत, मन्नू, राजेश, प्रवेश, प्रदीप, सिंटू, कवींद्र, पप्पू, बादल, सुभाष, शिवम मौजूद थे।



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Before the martyrdom, 1300 Chinese soldiers were killed.

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