डुमरांव/बक्सर (अरविंद कुमार चौबे). तितलियां व कीट-पतंग जो हमारे खेतों में मंडराते देखे जाते थे, अब हमारे घरों की शोभा बढ़ाएंगे। इसके लिए वीर कुंवर सिंह कृषि महाविद्यालय डुमरांव के द्वारा बड़ी पहल की गई है। इसके तहत तितली व अन्य वन्य कीटाणु का आप अपने घर में सजा सकते हैं। यह आर्टिफिशियल नहीं प्राकृतिक होगा। इसके लिए विद्यालय के द्वारा ऑनलाइन बिक्री भी शुरू हो गई है।

भारत का इकलौता प्रोजेक्ट

कृषि महाविद्यालय के जीव जंतु विषय पर रिसर्च कर रहे डाॅ. चन्द्रशेखर प्रभाकर ने बताया कि पूरे भारत का इकलौता प्रोजेक्ट है। इसमें काॅलेज से प्राकृतिक तौर पर उपलब्ध कराया जा रहा है। डाॅ. प्रभाकर ने बताया कि अब तक यहां होता रहा है कि तितली व अन्य कीट की मौत के बाद पता नहीं चलता वह कहां खो गए। लेकिन अब मरने के बाद भी तितली 20 से 25 सालों तक घरों कीदीवारों पर खूबसूरती बिखेरेंगी।


500 से अधिक की प्रजातियों को चिन्हित किया

अब तक 500 से अधिक की प्रजातियों को बिहार के विभिन्न हिस्सों में चिन्हित किया है। इसे शोकेस में सजाकर लोगों को जागरूक किया जा रहा है। डुमरांव कॉलेज के संग्रहालय रेशम के एक दुर्लभ तसर के कीट को भी रखा गया है। इस कीट में अपेक्षाकृत तसर रेशम उत्पादन की अपार संभावनाएं हो सकती हैं। कृषि महाविद्यालय डुमरांव में रिसर्च के बाद इसका उपयोग शुरू कर दिया गया है। कॉलेज के द्वारा इसे बिहार म्यूजियम में भी लगाने का प्रस्ताव सरकार को भेजा गया है।

ऑनलाइन बिक्री शुरू, दक्षिण भारत से आ रही डिमांड

कृषि कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. अजय कुमार ने बताया कि महाविद्यालय की तरफ से इसकी ऑनलाइन बिक्री शुरू कर दी गई है। इसकी मद्रास व विलिंगटन (ऊटी) सहित कई इलाकों से आवेदन आ रहे हैं। इसकी डिमांड भी पूरी की जा रही है। इसका रेट शोकेस के अनुसार 500 से लेकर 2000 तक तक रखा गया है। डॉ. अजय ने बताया कि यूनिवर्सिटी के सभी छह कॉलेज, विश्वविद्यालय, बामेती में भी इसे शोकेस के रूप में लगाया गया है। वहीं बिहार म्यूजियम में लगाने के लिए महाविद्यालय के तरफ से प्रस्ताव भेजा गया है। डा. अजय ने बताया कि मृत कीटों के उपयोग के लिए रिसर्च कर रहे कॉलेज के प्रोफेसर डॉ चंद्रशेखर प्रभाकर को इसका श्रेय जाता है, जो लगातार इस पर रिसर्च कर रहे हैं। उन्हें इसी रूचि को देखते हुए महाविद्यालय के द्वारा एक वर्ष के लिए ऑस्ट्रेलिया में ट्रेनिंग के लिए भेजा गया था।

ब्रह्माण्ड में हैं आठ लाख से अधिक कीट : डाॅ. प्रभाकर
प्रभाकर ने बताया कि कीड़े की प्रचुर मात्रा में पूरी दुनिया में पाए जाते हैं। वातावरण में बहुत से परिस्थितिकी कार्य किए जाते हैं। पौधे में परागण की अस्सी फिसदी से अधिक क्रिया इस दुनिया में इन्हीं कीटों के द्वारा की जाती है। ब्रह्मांड में कीटों की आठ लाख से अधिक प्रजातियां पाई जाती है। जो पूरे दुनिया में पाई जाने वाली 80 फीसदी सजीव जातियों के बराबर है।



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बिहार म्यूजियम पटना में इनके संग्रह को लगाने के लिए प्रस्ताव भेजा गया है।

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