स्टाइपेंड बढ़ाने की मांग को लेकर जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल दूसरे दिन भी जारी रही। इससे मरीजों को फजीहत झेलनी पड़ी। ओपीडी और जांच भी प्रभावित रही। हड़ताल में राज्य के तकरीबन एक हजार इंटर्न भी शामिल हो गए हैं। उधर, एनएमसीएच में सभी डॉक्टरों की छुटि्टयां रद्द कर दी गई हैं। जेडीए ने गुरुवार को पीएमसीएच में दो घंटे तक ओपीडी रजिस्ट्रेशन बंद कराया।

हालांकि बाद में अस्पताल प्रशासन ने काउंटर खुलवा दिया। काउंटर के पास पुलिस की तैनाती करनी पड़ी। काउंटर बंद होने से अधिकांश मरीज लौट गए। गुरुवार को ओपीडी में 858 मरीजों ने रजिस्ट्रेशन कराया। जिन लोगों ने रजिस्ट्रेशन कराया था उनको सीनियर डॉक्टरों ने देखा। वैसे पीएमसीएच के ओपीडी में रोज 1200 से 1700 मरीज रजिस्ट्रेशन कराते हैं।
डॉक्टरों से गुरुवार को अस्पताल प्रशासन की हड़ताल खत्म करने पर कोई वार्ता नहीं हुई। प्रधान सचिव प्रत्यय अमृत भी सुविधाओं का निरीक्षण करने पीएमसीएच पहुंचे थे। दो घंटे तक कैंपस में रहे पर उनसे भी जेडीए की कोई बात नहीं हुई। न जेडीए के प्रतिनिधि मिलने गए और न ही उन्होंने बुलाया। जेडीए का कहना है कि मांग पूरी नहीं हुई तो आंदोलन और तेज किया जाएगा।

पीएमसीएच के अधीक्षक डॉ. विमल कारक ने बताया कि सीनियर डॉक्टरों की डबल रोस्टर ड्यूटी लगाई गई है। साथ ही सिविल सर्जन को 50 डॉक्टर देने को लिखा गया है। अधीक्षक ने कहा कि शुक्रवार को वे प्रधान सचिव से मिलने जाएंगे। इस बीच, स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने जूनियर डॉक्टरों से काम पर लौटने का आग्रह किया है।

नवजात की मौत हो गई, मां को इलाज के लिए निजी अस्पताल ले जाना पड़ा

पालीगंज के मखमिलपुर के सुबोध लेबर पेन होने पर बहन पूजा को गुरुवार तड़के 4.30 बजे लेकर गाइनी गेट पर जबतक पहुंचते, बहन को प्रसव हो गया। हालांकि उसे भर्ती कर लिया गया। बाद में बताया गया कि बच्चे को बचाया नहीं जा सका। पूजा को 7 महीने का गर्भ था।

सुबोध का आरोप था कि कोई डॉक्टर देखने नहीं आया। बहन को दूसरे अस्पताल या फिर प्राइवेट में ले जाने के लिए सुबोध एंबुलेंस लेकर आए और बहन को प्राइवेट अस्पताल में इलाज के लिए लेकर चले गए। फिलहाल पूजा नौबतपुर में प्राइवेट अस्पताल में भर्ती है। वहां उसे खून चढ़ाया जा रहा है।

25 दिनों तक पति मौत से लड़े, डॉक्टरों ने जब साथ छोड़ा तो वे भी संघर्ष हार गए
30 नवंबर से तो वे मौत से लड़ ही रहे थे। आखिर हड़ताल के बाद ऐसा क्या हुआ कि वह नहीं रहे। इस दौरान डॉक्टर तो दूर नर्स भी देखने नहीं आई तो जान तो जानी ही थी। हम तो दवा-नर्स की तरह देखभाल नहीं जानते। कहां चूक हुई पता नहीं। लेकिन मेरी तो दुनिया ही उजड़ गई।

जो पैसे थे वह भी खर्च हो गए और परिचितों से इलाज कराने के लिए कर्ज और चंदा भी लिया। वे (अशोक) दुर्घटना में घायल हो गए थे। परिजन शव लेने के लिए इंतजार कर रहे थे और लीला दहाड़ मारकर रो रही थी। उनके साथ रिश्तेदार रामाशीष भी थे। इसी दौरान संवाददाता की वैशाली की लीला से बात हुई।



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पालीगंज के मखमिलपुर के सुबोध लेबर पेन होने पर बहन पूजा को गुरुवार तड़के 4.30 बजे लेकर गाइनी गेट पर जबतक पहुंचते, बहन को प्रसव हो गया।

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